भीकाजी बलसारा: पहले भारतीय जिन्होंने हासिल की अमेरिकी नागरिकता
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Bhicaji Balsara: भीकाजी बलसारा पहले भारतीय थे जिन्होंने 1910 में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अमेरिकी नागरिकता हासिल की. 20वीं सदी में नस्लभेद के बावजूद उन्होंने यह सफलता पायी.
हाइलाइट्स
- भीकाजी बलसारा पहले भारतीय थे जिन्होंने अमेरिकी नागरिकता पायी
- बलसारा ने 1910 में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद नागरिकता हासिल की
- 20वीं सदी में नस्लभेद के बावजूद मुंबई के बलसारा ने सफलता पायी
Bhicaji Balsara: डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद अमेरिका में जन्मसिद्ध नागरिकता (बर्थ राइट सिटीजनशिप) को खत्म करने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए. यह आदेश सुनिश्चित करता कि विदेशी पासपोर्ट धारकों के बच्चों को अब अमेरिकी नागरिक नहीं माना जाएगा. वो तो गनीमत है कि अमेरिकी कोर्ट ने ट्रंप के इस आदेश पर स्टे लगा दिया है. नवीनतम जनगणना के अनुसार, अमेरिका में 54 लाख से अधिक भारतीय रहते हैं. यह संख्या अमेरिकी आबादी का लगभग 1.47 फीसदी है. इनमें दो-तिहाई अप्रवासी हैं, जबकि 34 फीसदी अमेरिका में जन्मे हैं. यदि ट्रंप के कदम को लागू किया जाता है, तो अस्थायी वर्क वीजा या टूरिस्ट वीजा पर अमेरिका में रहने वाले भारतीय नागरिकों के बच्चों को अब ऑटोमैटिक रूप से नागरिकता नहीं मिलेगी.
अमेरिका में राजनीति से लेकर अमेरिकी प्रशासन तक में भारतीयों का मजबूत दखल है. सिलिकॉन वैली में तो भारतीय छाए हुए हैं. अमेरिका की तमाम दिग्गज कंपनियों के शीर्ष पदों पर भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक काबिज हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारतीयों के अमेरिकी नागरिक बनने की शुरुआत कब हुई थी. लेकिन अमेरिका की नागरिकता हासिल करना कभी भी इतना आसान नहीं था. अमेरिका में 20वीं सदी के दौरान नस्लभेद का दौर था. उस माहौल में भीकाजी बलसारा पहले ऐसे भारतीय बने, जिन्होंने अमेरिका की नागरिकता हासिल की.
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श्वेत लोगों को मिलती थी नागरिकता
बंबई (अब मुंबई) के कपड़ा व्यापारी भीकाजी बलसाराको इसके लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी थी. उन्होंने ये लड़ाई लड़ी और सफलता हासिल की. अमेरिका में 1900 की शुरुआत में सिर्फ आजाद श्वेत लोगों को ही अमेरिका की नागरिकता दी जाती थी. लोगों को अमेरिका की नागरिकता 1790 के नैचुरलाइजेशन एक्ट के तहत मिलती थी. अमेरिका की नागरिकता लेने के लिए लोगों को साबित करना पड़ता था कि वो श्वेत हैं और आजाद हैं.
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1906 में खटखटाया कोर्ट का दरवाजा
1790 के नैचुरलाइजेशन एक्ट को लेकर भीकाजी बलसारा ने पहली लड़ाई साल 1906 में न्यूयॉर्क के सर्किट कोर्ट में लड़ी. बलसारा ने दलील दी कि आर्यन श्वेत थे, जिनमें कोकेशियन और इंडो-यूरोपियन भी शामिल हैं. बाद में बलसारा की इस दलील का उन भारतीयों ने भी कोर्ट में इस्तेमाल किया, जो अमेरिका की नैचुरलाइज्ड सिटिजनशिप चाहते थे. बलसारा की दलील पर कोर्ट ने कहा कि अगर इस आधार पर उनको अमेरिका की नागरिकता दी जाती है तो इससे अरब, हिंदू और अफगानों के लिए भी नैचुरलाइजेशन का रास्ता खुल जाएगा. कोर्ट ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया. हालांकि, कोर्ट ने कहा कि बलसारा अमेरिका की नागरिकता के लिए उच्च अदालत में अपील कर सकते हैं.
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फिर बलसारा को कैसे मिली नागरिकता
भीकाजी बलसारा को एक पारसी होने के नाते फारसी संप्रदाय का शुद्ध सदस्य माना जाता था. इसलिए उन्हें स्वतंत्र श्वेत व्यक्ति भी माना जाता था. बलसारा को 1910 में न्यूयॉर्क के साउथ डिस्ट्रिक्ट के जज एमिल हेनरी लैकोम्बे ने इस उम्मीद के साथ अमेरिका की नागरिकता दी कि वकील उनके फैसले को चुनौती देंगे. साथ ही कानून की आधिकारिक व्याख्या के लिए अपील करेंगे. अमेरिकी अटॉर्नी ने लैकोम्बे की इच्छाओं का पालन किया और 1910 में इस मामले को सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स में ले गए. सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स ने सहमति जताई कि पारसियों को श्वेत के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इसी फैसले के आधार पर बाद में एक अन्य संघीय अदालत ने एके मजूमदार को अमेरिका की नागरिकता दी थी.
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1917 में अमेरिका लाया आप्रवासन अधिनियम
भीकाजी बलसारा के पक्ष में आया ये फैसला अमेरिकी अटॉर्नी जनरल चार्ल्स जे. बोनापार्ट की 1907 की घोषणा के विपरीत था. इसमें उन्होंने कहा था कि किसी भी कानून के तहत ब्रिटिश भारत के मूल निवासियों को श्वेत नहीं माना जा सकता है. साल 1917 के आप्रवासन अधिनियम के बाद अमेरिका में भारतीयों का आप्रवासन कम हो गया. हालांकि, पंजाबी अप्रवासी मेक्सिको सीमा के जरिये अमेरिका में घुसते रहे. कैलिफोर्निया की इंपीरियल वैली में पंजाबियों की बड़ी आबादी थी, जिन्होंने इन अप्रवासियों की मदद की. सिख अप्रवासी पंजाबी आबादी के साथ आसानी से घुल मिल गए.
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कैसे बढ़ी अमेरिका जाने वालों की रफ्तार
दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने भारतीय आप्रवासन के लिए दरवाजा फिर खोल दिए. साल 1946 के लूस-सेलर अधिनियम के तहत हर साल 100 भारतीयों को अमेरिका में प्रवास की अनुमति दी गई. साल 1952 के प्राकृतिककरण अधिनियम ने 1917 के वर्जित क्षेत्र अधिनियम को निरस्त कर दिया. इसे मैककारन-वाल्टर अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है. हालांकि, इसमें भी हर साल सिर्फ 2,000 भारतीयों को ही अमेरिका नागरिकता देने की रोक रखी गई. साल 1965 से 1990 के मध्य तक भारत से दीर्घकालिक आप्रवासन औसतन 40,000 लोग सालाना का था. साल 1995 के बाद से भारतीय आप्रवासन काफी बढ़ गया, जो साल 2000 में लगभग 90,000 आप्रवासियों के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया.
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आईटी सेक्टर में बूम का मिला लाभ
भारत से 21वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका में प्रवास की प्रवृत्ति में अहम बदलाव देखा गया. बेंगलुरु, चेन्नई, पुणे और हैदराबाद में आईटी सेक्टर में जबरदस्त विकास हुआ. इसके बाद तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु से बड़ी संख्या में लोग अमेरिका गए. अमेरिका की ओर से हर जारी किए जाने वाले सभी एच-1बी वीजा में 80 फीसदी से ज्यादा भारतीयों को ही मिलते हैं. साल 2000 के बाद से बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों ने उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका जाना शुरू कर दिया. अनुमान बताते हैं कि किसी भी साल 5,00,000 से ज्यादा भारतीय-अमेरिकी उच्च-शिक्षा संस्थानों में जाते हैं.
नई दिल्ली,दिल्ली
28 जनवरी, 2025, 18:32 है
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